Friday 18 February 2022

‘भाजपा बनाम बसपा’ है उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022

भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है बसपा ==========================================

इन्द्रा साहेब Indra Saheb

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बसपा के इतिहास को देखते हुए जातिवादी मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी वर्गों और सत्तारूढ़ भाजपा ने जिस तरह से बसपा के खिलाफ कथानक तैयार किया है, जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया ने विजुअल्स तैयार किया है, उससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022 की असली लड़ाई भाजपा बनाम बसपाहै। इसलिए बसपा की मजबूत स्थित के मद्देनजर भाजपा, जातिवादी मीडिया और तथाकथित विद्वानों द्वारा बसपा से जुड़ने वाले फ्लोटिंग वोट, खासकर मुस्लिम व अन्य एंटी-बीजेपी वोटर्स, को डायवर्ट करने के लिए सपा को जबरन फाइट में दिखाया जा रहा है जबकि तथ्य यह हैं कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है, और बसपा का अपना कोर वोटर पूरी मजबूती से उसके साथ लगातार बना हुआ है।

बसपा ने 2007 में जब पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं थी तब उसको 30 फीसदी के आस-पास वोट मिले थे, जब २०१२ में सत्ता से बाहर हुए तो भी उसके पास 25 फीसदी के आस-पास वोट था, और जब भारत और खासकर उत्तर में धार्मिक उन्माद चरम पर थी तब भी बसपा के पास 22.50 फीसदी वोट इसके साथ रहा जबकि समाजवादी पार्टी कांग्रेस व अन्य छोटे-मोटे सभी दलों को जोड़कर भी ना तो सीटे जीतकर हाफ़ सेंचुरी बना पायी और ना ही बसपा से ज्यादा वोट बटोर पायी। साथ ही 2019 में हुए लोकसभा आमचुनाव के बसपा सपा से सीट और कुल वोट के मामले में भी आगे रही है। ऐसे में भी यदि तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा उत्तर प्रदेश की दूसरे नम्बर की पार्टी बसपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022 के सन्दर्भ में कमजोर दिखाया जा रहा है तो यह इनकी निजी स्वार्थ, जातिवादी व कुण्ठित मानसिकता का परिणाम मात्र है।

इन कुण्ठित विद्वानों व विश्लेषकों को यह बात स्वीकारनी होगी कि बसपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। इसकी अपनी स्वतंत्र राजनीति, रणनीति व कार्यशैली है। यदि फिर भी स्वघोषित एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों को लगता है कि बसपा किसी का खेल बिगाड रहीं हैं, या बसपा फाइट में नहीं है, या फिर बसपा खत्म हो चुकी है, तो एक आम इन्सान भी बड़ी आसानी से समझ सकता है कि उनके निर्णय व विश्लेषण निष्पक्ष व विद्वतापूर्ण होने के बजाय उनकी निजी खीझ मात्र है। हमारा स्पष्ट मत है कि बसपा के सन्दर्भ में तथाकथित विद्वानों के विश्लेषण उनकी जातिवादी सोच व निजी कुण्ठा का परिणाम मात्र है।

साथ ही, देश को भी समझने की जरूरत है कि जातिवादी मीडिया एवं तथाकथित बुद्धिजीवी वर्गों द्वारा बसपा की स्वतंत्र अस्मिता को स्वीकार नहीं कर पाना, जातिवादी मीडिया एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों की कुंठा को प्रदर्शित करता है। शुरूआती समय से ही मनुवादी रोग व कुण्ठा ने शूद्रों व दलित समाजों में जन्में अधिकारीयों, कर्मचारियों एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों को भी जकड़ रखा है। यही वजह है कि बड़े ओहदों पर आरक्षण पाकर बैठे मनुरोग के शिकार व कुण्ठित लोगों के सन्दर्भ में मान्यवर साहेब कहते थे कि बहुजन समाज के अधिकांश अधिकारियों, कर्मचारियों व बुद्धिजीवियों ने हमारे खिलाफ दुष्प्रचार किया था। दुखद है कि यह दुष्प्रचार आज भी बसपा के खिलाफ जारी है।

इन सब के बावजूद घर के बाहर व भीतर की समस्त चुनौतियों से पूरी बहादुरी के साथ लड़ते हुए बसपा ने ना सिर्फ कुण्ठित व जातिवादी मानसिकता से पीड़ित गाल बजाते लोगों को बल्कि तथाकथित राजनैतिक विश्लषकों को भी गलत साबित करके 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकारी बनायी है।

फिलहाल, उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022 के सन्दर्भ में तथ्य यह है कि बसपा का खेल सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां बिगाड़ कर भाजपा को जिताने के लिए काम कर रही है क्योंकि सपा फाइट में तीसरे नम्बर पर है और भाजपा के सत्ता में रहने से हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण बना रहेगा और इसका फायदा भाजपा के साथ-साथ सपा को मिलेगा। इसलिए सपा भाजपा की बी टीम के तौर पर पूरी सिद्धत से कार्यरत है।

भाजपा को सपा के साइलेंट समर्थन के मद्देनजर ही पश्चिम के शुरूआती दोनों चरणों के चुनावों में भाजपा को सत्तारूढ़ होने से रोकने के लिए मुस्लिम ने लगभग एकमुश्त और जाट व अन्य वर्गों ने भी लगभग दो-तिहाई समर्थन बसपा को दिया है। पश्चिम के मुस्लिमों की इस बुद्धिमत्तापूर्ण समर्थन का असर पूर्वांचल के मुस्लिमों पर साफ-साफ झलक रहा है। इसलिए भाजपा के शासनकाल में पीड़ित सम्पूर्ण मुस्लिम वर्ग व सपा के गुण्डाराज से भयभीत अतिपिछड़ा व सवर्ण तबका बसपा की तरफ रुख कर चुका है।

मौजूदा उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022 में जिस तरह से बसपा ने शान्तिपूर्वक 500 से अधिक जनसभाएं की, सामाजिक ताने-बाने का पूर्ण ख्याल रखते हुए राजनैतिक क्रमचय-संचय के द्वारा टिकटों का वितरण किया है, और जब भाजपा, कांग्रेस और सपा अपने अन्दर के कलह से जूझ रहे हैं ऐसे में बसपा अपने पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के माध्यम से हर घर में पहुँचकर बसपा के कार्यकाल में किये गए ऐतिहासिक कार्यों व संविधान सम्मत शासन के आधार पर वोट की अपील कर रही है, जिस तरह से प्रतिदिन बहनजी अपनी विशाल चुनावी जनसभाओं में दलित, आदिवासी, पिछड़े, अतिपिछड़े, अल्पसंख्यक, गरीब सवर्ण, किसानों, फौजियों, राज्यकर्मियों, मेहनतकश वर्गों, महिलाओं, छात्रों, बेरोजगारों की समस्याओं को ना सिर्फ रेखांकित कर रहीं है बल्कि उसके समाधान पर जोर देते हुए सुन्दर व समृद्ध उत्तर प्रदेश का ख़ाका खींच रहीं हैं, जिस तरह बसपा ने उत्तर प्रदेश में कानून द्वारा कानून का राजस्थापित करते हुए गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा संग वजीफा, उन्नत व सस्ती स्वास्थ सेवा मुहैया कराया है, सर्वसमाज के हितों को ध्यान में रखते हुए 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' की नीति के तहत कार्य किया है, उससे साफ़ जाहिर होता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव-2022 के परिणाम तमाम एक्जिट पोल, सर्वे व तथकथित राजनैतिक विश्लेषकों के विश्लेषण को गलत साबित करेगें। उत्तर प्रदेश की आमजनता के रुख से पूरे आसार है कि बसपा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है।

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(इन्द्रा साहेब : शोध ग्रन्थ 'मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन - सिद्धान्त एवं सूत्र' के लेखक हैं)

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Saturday 12 June 2021

बसपा-शिअद गठबंधन तय करेगा पंजाब की सियासत

भारत की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बहुजन समाज पार्टी और पंजाब के क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने आपसी समझौते के तहत 2022 में होने वाले चुनावों में गठबंधन कर भाग लेने का निर्णय लिया है। बसपा दल के साथ समझौते के बजाय जन के साथ समझौता करने को हमेशा प्राथमिकता देती है। इसलिए बसपा का किसी भी दल के साथ प्री पोल एलायंस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण खबर है।

हालांकि यह भी सच है कि देशहित व जनहित में, खासकर देश के वंचित जगत किसानों पिछड़ों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की समस्याओं के मद्देनजर, जब-जब जरूरत महसूस हुई है बसपा ने गैर-बराबरी की संस्कृति के पोषक राजनैतिक दलों के अत्याचारों से देश को बचाने के लिए गठबंधन भी किया है।

पंजाब की कांग्रेस सरकार तथा केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा पंजाब के किसानों पर हुए अत्याचार के मद्देनजर ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

यह गठबंधन इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि शिरोमणि अकाली दल सिखों की अपनी एक पार्टी है और सिख भारत के अल्पसंख्यकों में शामिल हैं। कहने का मतलब यह है कि बहुजन समाज पार्टी अपने दल में अकलियत समाज को व उनके हितों को प्राथमिकता देती है और "बहुजन" शब्द के दायरे में सिखों समेत पूरा अल्पसंख्यक समुदाय शामिल है। इसलिए यह गठबंधन सैद्धांतिक नजरिए से भी बेहतरीन कदम है।

यह गठबंधन पंजाब में कांग्रेस, भाजपा और वहां पर अपनी पकड़ बनाने की जद्दोजहद कर रही आम आदमी पार्टी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गठबंधन यदि सफल रहा तो आने वाले समय में पंजाब से कांग्रेस, भाजपा व नई नवेली पार्टियों को लम्बे समय तक के लिए पंजाब से बाहर कर सकती है।

सामान्य तौर पर पंजाब का अपर क्लास व कास्ट, मिडिल क्लास व वंचित जगत के लोग ही कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के वोटर रहे हैं। पंजाब में वंचित जगत की आबादी लगभग एक तिहाई है, ऐसे में बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन से पंजाब में एक नया राजनीतिक समीकरण तय होने की पूरी संभावना है।

यह गठबंधन जहां एक तरफ पंजाब की बहुतायत आबादी को एक सूत्र में बांधकर पंजाब की उन्नति में गति देने का काम करेगी, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर भाजपा और आम आदमी पार्टी को किनारे भी लगा सकती हैं।

इस गठबंधन के औपचारिक घोषणा के बाद भारत के तीसरे सबसे बड़ी पार्टी बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय नेता परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने पंजाब तथा देश के नाम लिखे अपने ट्विटर संदेश में खुशी जाहिर करते हुए इस गठबंधन को पंजाब के लिए एक नए युग की शुरुआत बताते हुए कहते हैं कि "पंजाब में आज शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन यह एक नया राजनीतिक व सामाजिक पहल है, जो निश्चय ही यहाँ राज्य में जनता के बहु-प्रतीक्षित विकास, प्रगति व खुशहाली के नए युग की शुरूआत करेगा। इस ऐतिहासिक कदम के लिए लोगों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।"

पंजाब में व्याप्त भ्रष्टाचार, किसानों व वंचितों पर हो रहे अत्याचार व बेरोजगारी की तरफ ध्यान दिलाते हुए परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी कहती हैं कि "वैसे तो पंजाब में समाज का हर तबक़ा कांग्रेस पार्टी के शासन में यहाँ व्याप्त गरीबी, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी आदि से जूझ रहा है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा मार दलितों, किसानों, युवाओं व महिलाओं आदि पर पड़ रही है, जिससे मुक्ति पाने के लिए अपने इस गटबन्धन को कामयाब बनाना बहुत जरूरी।"

पंजाब के बदलते राजनीतिक व सामाजिक समीकरण के मद्देनजर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्षा परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी पंजाब के लोगों से अपील करते हुए कहती हैं कि "पंजाब की समस्त जनता से पुरज़ोर अपील है कि वे अकाली दल व बी.एस.पी. के बीच आज हुये इस ऐतिहासिक गठबन्धन को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए यहाँ सन् 2022 के प्रारम्भ में ही होने वाले विधानसभा आमचुनाव में इस गठबन्धन की सरकार बनवाने में पूरे जी-जान से अभी से ही जुट जाएं।"

फिलहाल, सोशल मीडिया, टेलीविजन चैननों व लोगों के बीच यह ऐतिहासिक गठबंधन चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। इस ऐतिहासिक गठबंधन के संदर्भ में सुप्रसिद्ध राजनैतिक विश्लेषक प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि "1996 के बाद पंजाब में बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल से फिर हुआ। यह गठबंधन इस लिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह प्री पोल अलाइंस है, पोस्ट पोल अलाइंस नहीं। ये बात और है की आज से 25 वर्ष पहले मान्यवर कांशीराम जी के अगुवाई में लोक सभा के चनावों में यह प्री पोल अलाइंस हुआ था और अब बहनजी के नेतृत्व में यह प्री पोल अलाइंस विधान सभा के चुनावो के लिए हो रहा है।"

हमारे बहुजन समाज का युवा अक्सर बसपा की राजनीति को समझने के बजाय अक्सर लोगों द्वारा गुमराह कर दिया जाता है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि राजनीति की समझ को विकसित कर रहा युवा अभी फ्री पोल और पोस्ट पोल अलाइंस के फर्क को बारीकी से समझ नहीं पाता है। यही वजह है कि प्रोफेसर विवेक कुमार देश के युवाओं एवं खासकर बहुजन युवाओं को सचेत करते हुए कहते हैं कि "बहुजनो को प्री पोल अलाइंस और  पोस्ट पोल अलाइंस में अंतर अवश्य ही समझना चाहिए क्योंकि आज तक बसपा ने प्री पोल अलाइंस कुछ ही दलों से किया है - जैसे कांग्रेस, सपा, एसएडी, INLD, JDS आदि।"

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने पंजाब पहुंचकर शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व के साथ मिलकर इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा की। इसके पश्चात बसपा के राष्ट्रीय महासचिव ने अपने मोबाइल फोन से शिरोमणि अकाली दल प्रमुख श्री प्रकाश सिंह बादल की परम आदरणीया बहन जी से बात करवाई। बातचीत के दौरान भारत महानायिका परम आदरणीय बहन कुमारी मायावती जी ने और श्री प्रकाश सिंह बादल ने एक दूसरे का कुशल-मंगल पूछा, स्वास्थ्य पर चर्चा की और बदलते पंजाब की जरूरत के मुताबिक नए सामाजिक व राजनैतिक समीकरण को तय करने के लिए एक दूसरे को बधाई दी।

पंजाब में हुआ बसपा-शिअद गठबंधन आने वाले समय में जहां पंजाब की सियासत के समीकरण तय करते हुए पंजाब की जनता को पंजाब की बेहतरीन तकदीर लिखने का मौका दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में उत्तर प्रदेश के युवाओं में एक नया जोश एवं उमंग भरने का काम करेगा।

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पंजाब का विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणामस्वरूप यदि पंजाब और उत्तर प्रदेश में सरकारें बनती है तो इसका सीधा फायदा 2023 में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

रजनीकान्त इन्द्रा

Wednesday 5 May 2021

राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ - 2.21 फीसदी आबादी के लिए उम्मीद की किरण 

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का 2.21 प्रतिशत लोग विकलांग है। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो समाज में तिरस्कार व बहिष्कार की जिंदगी जी रहे हैं। इनके शिक्षा का स्तर काफी कम है, और समाज भी अपनी मनुवादी संस्कृति के तहत इनके इस विकलांगता को इनके पुनर्जन्म का परिणाम मानकर इनको इनके हाल पर छोड़ देती है।

ऐसे में भारत जैसे देश में जहां पर सभी को समान नागरिक हक है, और सभी को अपने जिंदगी में बेहतर करते हुए आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध है, वहां इन सब के बावजूद 2008 के पहले तक की सारी सरकारों ने देश के 2.21 फ़ीसदी आबादी को इनके हाल पर छोड़ कर हाशिए पर ढकेल दिया था।

ऐसे में देश की 2.21 फ़ीसदी आबादी के सर्वांगीण विकास के मद्देनजर रखते हुए 29 अगस्त 2008 को परम आदरणीय बहन जी के नेतृत्व वाली बसपा सरकार ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगभग 131 एकड़ में फैला एक आवासीय विश्वविद्यालय की नींव रखी जो अपनी बनावट, स्थापत्य कला, तकनीकी, पाठ्यक्रम और विकलांगों के जीवन से जुड़ी हर मूलभूत सुविधाओं के साथ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया का एक अनोखा विश्वविद्यालय है।

दुखद है कि यह विश्वविद्यालय भारत की केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के लिए आदर्श होना चाहिए था था परन्तु ऐसा नहीं है। केंद्र व राज्य सरकारों ने बहन जी के इस अहम कार्य को एक आदर्श के तौर पर अपना कर अपने-अपने राज्यों में लागू करने के बजाय नज़रअंदाज किया है।

फिलहाल, इस विश्वविद्यालय में 7 आधुनिक तकनीकी पर आधारित संकाय स्थापित किए गए।

1. Faculty of Law

2. Faculty of Art & Music

3. Faculty of Science & Technology

4. Faculty of Engineering & Technology

5. Faculty of Commerce & Management

6. Faculty of Computer & Information Technology

7. Faculty of Special Education (Specially for Disability)

इन 7 संकायों में कुल 30 अलग-अलग विभाग है।

1. Law

2. History

3. Fine Art

4. Physics

5. Zoology

6. Botany

7. Chemistry

8. Education

9. Commerce

10. Economics

11. Microbiology

12. Management

13. Biotechnology

14. Civil Engineering

15. Computer Science

16. Electrical Engineering

17. Mechanical Engineering

18. Mathematics & Statistics

19. Hindi & Other Indian Languages

20. Computer Science & Engineering

21. Department of Visual Impairment

22. Department of Mental Retardation

23. English & Other Foreign Languages

24. Department of Hearing Impairment

25. Artificial Limb and Rehabilitation Centre

26. Political Science & Public Administration

27. Electronics & Communication Engineering

28. Sociology, Social Science and Social Work

29. Centre for Indian Sign Language and Deaf Studies

30. Department of Multiple Disabilities & Rehabilitation

जिसके तहत विकलांगों को स्नातक से लेकर पीएचडी तक की शिक्षा दी जाती है। साथ ही इस विश्वविद्यालय में विकलांग जनों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनके लिए विशेष सुविधाएं भी है जिनमें से कुछ निम्नांकित हैं।

1. Medical Facilities

2. Physiotherapy Unit

3. Assesment Services

4. Diagnostic Services

5. Therapeutic Services

6. Consultation Services

7. Exercise Therapy

8. Gait Training

9. Postural Correction

10. Disability minimizing therapy Plans

11. Ultrasonic Thearapy (US)-Digital & Modern Unit

12. Electrical Nerve Muscle Stimulator (EMS) and Transcutaneous Electrical Nerve Stimulation (TENS)-4 Channel

दुखद है कि देश की जनता, मीडिया जगत, तमाम मेरिटधारी बुद्धिजीवी लोगों तथा बहुजन समाज के रजिस्टर्ड संस्थाओं ने 2007 से 2012 से दौरान हुए इस तरह के सभी ऐतिहासिक व कालजयी कार्य को नजरअंदाज कर दफन कर दिया है।

ऐसे में, भारत में संविधान, लोकतंत्र और मानवाधिकार व भारत को मजबूत बनाने वाले लोगों का नैतिक दायित्व बनता है कि वे इस तरह के सभी कार्यों को ना सिर्फ जन-जन तक पहुंचाया जाए बल्कि राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर नजीर के तौर पर भी स्थापित करें।

रजनीकान्त इन्द्रा

Thursday 3 September 2020

बहन जी से असंवैधानिक तरीकों की उम्मीद ना कीजिए

भोले-भाले चमचों,

विरोध करने के लिए लाठी चलानी जरूरी है, क्या? एक स्वस्थ लोकतंत्रिक भाषा में विरोध कैसे किया जाता है, कृपया समझाने का प्रयास करेंगें? आपको ऐसा क्यूँ लगता है कि बहन जी चमचे और भक्तों की तरह गालियां देती फिरे? आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि बहन जी चमचों की बात सुनें? कृपया बहन जी की तुलना भक्तों और चमचों के आकाओं से ना कीजिए। और ना ही बहन जी से किसी भी तरह के असंवैधानिक अलोकतांत्रिक और अनैतिक भाषा की उम्मीद कीजिए।

फिलहाल बहुजन समाज को विश्वास रहें कि बहनजी बुद्ध-फूले-अंबेडकरी विचारधारा की वाहक है, और अपनी इस बहुजन विचारधारा, बहुजन नायक-नायिकाओ के संघर्ष, बहुजन मुद्दे, नीति और रणनीति पर कायम हैं।

रजनीकान्त इन्द्रा

इतिहास छात्र इग्नू-नई दिल्ली

Saturday 25 July 2020

बहन जी को सब कुछ याद हैं।

बहन जी को सब कुछ याद हैं।
बीसवीं सदी के आठवें दशक की बात हैं। मान्यवर काशीराम साहेब बामसेफ के बैनर तले जहाँ एक तरफ सरकारी नौकरी-पेशा लोगों को एकजुट कर रहे थे तो वहीँ दूसरी तरफ डीएस-4 के मंच से देश के दलित-शोषित समाज को पूरी सिद्धत से जागृत कर उनकों बहुजन आन्दोलन के लिए तैयार कर रहे थे। इसी दरमियान विदर्भ में जन्मे एक युवक, जो कि मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में नौकरी कर रहा था, मान्यवर के मिशन से प्रभावित होकर बहुजन आन्दोलन का हिस्सा बनता हैं।
एक बार की बात हैं। साहब लोगों को मिशन और कैडर के सन्दर्भ में दिशा-निर्देश दे रहे होते हैं कि ये युवक एकाएक साहेब के पास आता हैं और कहता हैं कि साहेब मै फिल्म बनाना चाहता हूँ। साहेब उसे फटकारते हुए कहते हैं कि "मैं यहाँ सरकार बनाने की बात कर रहा हूँ, और तू फिल्म बनाने की बात कर रहा हैं। कितनी पढाई की हैं? फिल्म के बारे में कुछ जानता हैं?" युवक बोला, "नहीं"। साहब ने कहा कि पहले जा फिल्म के बारे में पढ़ाई कर, फिर आना।"
साहेब की ये बात सुनकर वो युवक राष्ट्रिय नाट्य अकादमी में प्रवेश के अर्जी दिया। उसका चयन हो गया। उसने मध्य प्रदेश शासन के अधीन ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। उसकी माता जी उसके सामने मिन्नतें कर रहीं थी कि नौकरी मत छोड़। लेकिन वो युवक नहीं माना।
जब एनएसडी के लिए वो युवक नागपुर स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने आया तो उसकी माता जी ने स्टेशन पर मौजूद पुलिस कर्मी के पैर पकड़ कर उससे विनती करने लगी कि उसका बेटा सरकारी नौकरी छोड़कर नाचने-गाने की पढाई करने के लिए दिल्ली जा रहा हैं, उसके बेटे को रोक ले। लेकिन पुलिस वाला कैसे रोक सकता था। फिलहाल वो युवक ट्रेन पर चढ़ा और एनएसडी-दिल्ली पहुँच गया।
समय बीतता गया। उस युवक ने एनएसडी से अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में ही थियेटर करना लगा। थियेटर से परिवार चलाने भर की ही आमदनी हो पाती थी। उस युवक के ऊपर परिवार की भी जिम्मेदारी थी। फिलहाल, आर्थिक स्थिति बद्तर हो चुकी थी। इस प्रकार वो युवक बहुजन आन्दोलन में सक्रिय नहीं हो पाया। इसके बावजूद दिल्ली व आप-पास के क्षेत्र में वह आन्दोलन और सभाओं के भाग लेता रहता था।
बात १९८६ की हैं। दिल्ली में मान्यवर साहेब से हुई एक मुलकात के दौरान साहेब ने उससे पूछा कि "आज कल क्या कर रहे हो? फिल्म की पढाई पूरी कर ली?" उस युवक ने बताया कि साहब थियेटर कर रहा हूँ। इसके बाद मान्यवर साहेब ने बहन जी से कहा कि "इस बच्चे का ख्याल रखना"।
दिन, महीने और साल बीतते गये। वो युवक अपने थियेटर के कार्य में व्यस्त रहा। और, उसी से अपनी जीविका भी चलता रहा। लेकिन थियेटर से इतनी कमाई नहीं हो पा रहीं थी। इसलिए माली हालत ख़राब ही रहीं। बावजूद इसके अपनी लगन के चलते युवक थियेटर कार्य, लेखन और बहुजन मुद्दे को सामने लाने में लगा रहा। भारतीय भाषा आन्दोलन से जुड़े रहकर विश्व हिंदी दिवस समेत तमाम अवसरों पर अपनी आवाज को बुलंद करते हुए भारतीय भाषा विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
फिलहाल, इधर मान्यवर साहेब की देख-रेख में माननीया बहन जी संघर्ष करती रहीं। बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकर के कारवां को नित नए मुक़ाम तक पहुँचती रहीं। साहेब, बहन जी के सतत संघर्ष और सकल बहुजन समाज में उभरती चेतना का परिणाम रहा कि ०३ जून १९९५ को पहली बार माननीया बहन जी ने भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की सरज़मी पर हुकूमत करने की शपथ ली। इसके बाद २१ मार्च १९९७ को दूसरी बार; ०३ मई २००२ को तीसरी बार मुख्यमन्त्री की शपथ ली।
इसके बाद ०९ अक्टूबर २००६ को मान्यवर साहेब का साया पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक समाज के सर से उठ गया। पिछड़े समाज की मसीहा माननीया बहन जी ने बहुजन समाज और बहुजन आन्दोलन की जिम्मेदारी को बखूबी संभल लिया। बहन जी ने इस कदर जिम्मेदारी निभा रहीं हैं कि भारत महानायिका बहन जी साहेब की कमी खलने नहीं दे रहीं हैं। इसका प्रमाण यह हैं कि बहन जी ने बुद्ध-बाबा साहेब के दिखलाये रास्ते पर चलते हुए १३ मई २००७ को पूर्ण बहुमत के साथ पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज की अपनी सरकार बनायीं।
फिलहाल १९८६ से लेकर २००७ लगभग २१ साल बीत गए। इस दरमियान उस युवक का मान्यवर साहेब व बहन जी से कोई ख़ास संपर्क नहीं रहा। वो युवक थियेटर में व्यस्त, अपनी जीवन जी रहा था। मुख्यमत्री बनते ही बहन जी ने उस युवक के एक दोस्त के पास फोन किया, और उस युवक दो दिन के भीतर लखनऊ भेजने के लिए कहा। उस युवक का दोस्त किसी कारण बस ये सूचना उस युवक तक नहीं पंहुचा सका। दो दिन से ज्यादा का वक्त बीत गया। एक शाम वो युवक फटेहाल, टूटी चप्पल पहने अपने दूसरे दोस्तों के साथ मंडी हॉउस के पास एक नुक्कड़ पर चाय पी रहा था। इतने वो उसका दोस्त आया और हर्ष से चिल्लाते हुए उस युवक से बोला कि तुम्हारी तो किश्मत खुल गई। तुम्हारे लिए लखनऊ से फोन आया था। तुमको तत्काल लखनऊ पहुँचाना हैं। अन्य दोस्त कुछ समझ ही नहीं पाये। वो शख्स भी आश्चर्यचकित था। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि बहन जी का बुलावा आया हैं। परन्तु, उसको याद था कि साहेब ने बहन जी से कहा था कि इस बच्चे का ख्याल रखना। शख्स अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। आनन्द की तरंगे हिलोरे मार रहीं थी।
शख्स ने अपने दोस्त से बताया कि मेरे पास ना तो कपडे हैं, ना ही पैर में चप्पल। मै कैसे लखनऊ जाऊ। इसके बाद उसके दोस्त ने अगले दिन पांच हजार का इंतजाम किया। उस पैसे से उस शख्स ने नये कपडे, जूते आदि ख़रीदा। इसके बाद शाम वाली ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना हो गया। आँखों से नीद गायब थी। मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। सोच रहा था कि लखनऊ में बहन जी ने अपने संघर्ष से पूर्ण बहुमत की सरकार बनायीं हैं। बहन से मिलने के बाद क्या होगा? बहन जी ने क्यों बुलाया हैं? इस तरह के सवाल उसके अंदर गूँज रहे थे। देखते-देखते रात गुजर गयी। सुबह करीब ६ बजे ट्रेन चारबाग पंहुच गयी। शख्स ट्रेन से उतरा और नहाने-धुलने के लिए रूम किरये पर लेने के लिए होटल पहुँचा गया।
होटल के मैनेजर ने शख्स का नाम पूँछा तो उसने अपना नाम यशवन्त उदय निकोसे बताया। यह नाम सुनते ही होटल के मैनेजर ने उसको पकड़ लिया। अपने गार्ड्स को एलर्ट कर दिया। पूछने पर मैनेजर ने बताया कि तुमको पुलिस ढूंढ रहीं हैं। तुम्हारे बारे में पूँछ-पूँछ कर पोलिस ने सबको परेशान कर दिया हैं। गार्ड्स से बोला कि इसको जाने मत देना, ये पुलिस द्वारा वांटेड हैं। शख्स ने बहुत मिन्नतें की कि मुझे आपके यहाँ एक कमरा चाहिए। मै ब्रश आदि करके नहाना-धुलना चाहता हूँ। उसकी मिन्नत सुनने के बाद उसके रूम के सामने गार्ड्स को तैनात कर मैनेजर ने पुलिस को सूचना दिया और बातचीत की।
इसके बाद जब निकोसे साहब नहा-धुल कर तैयार होकर बहन जी के आवास के लिए निकला। रिक्से वाले ने निकोसे को लेकर आवास की जगह आफिस पंहुच गया। गेट पर पंहुच कर गार्ड से निकोसे ने अपना परिचय बताया तो गार्ड ने रिक्शे वाले को एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया, और कहा कि इनकों लेकर आवास पर जाओं। फिर रिक्शे वाला निकोसे साहब को लेकर आवास पर पहुँचा। वहां पहुंचकर गार्ड को अपना परिचय दिया। गार्ड ने अपने वॉकी-टॉकी पर अंदर बात की। निकोसे साहब भी वॉकी-टॉकी की बात सुन रहे थे। अंदर से निर्देश आया कि उनकों सम्मान के साथ बैठओं, चाय आदि दीजिये। बहन जी अभी आ रही हैं।
इसके बाद निकोसे साहब ने गार्ड द्वारा मारे गए थप्पड़ के लिए रिक्शे वाले से माफी मंगाते हुए उसको सौ रुपये दिए। निकोसे साहब अंदर गए।आदर-सत्कार किया गया। नास्ते में काजू किसमिस और मिठाइयाँ रखी हुए थी। निकोसे साहब ने नास्ता किया। इसके कुछ देर बाद ही भारत महानायिका बहन जी का आगमन हुआ। पहुंचते ही माननीय बहन जी ने निकोसे जी से उनका कुशल-मंगल पूंछा। इसके बाद सेक्रेटरी ने ढेर सारे पेपर मेज पर बिखेर दिया। बहन जी उन पेपर्स पर हस्ताक्षर करने को कहा। निकोसे साहब ने बिना कुछ सोचें-समझे और पेपर्स को पढ़े बगैर बहन जी के निर्देशानुसार हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद माननीय बहन जी निकोसे जी को महामहिम राज्यपाल से मिलवायीं। और, महामहिम राज्यपाल महोदय से कहा कि ये सब इनके कुछ कागज हैं, आप इनकों ध्यान से देख लीजिये, ये हैं श्री यशवंत निकोसे जी। हमारी सरकार श्री यशवंत निकोसे जी को उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाना चाहती हैं। सारी कागजी कार्यवाही पूर्ण होने के बाद निकोसे जी का शपथ ग्रहण हुआ। इसके बाद भारत महानायिका बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी की काबिलियत को देखते हुए इन्हें उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। ऐसी हैं बहन जी, जिन्होंने कल के नुक्कड़ के निकोसे को उत्तर प्रदेश का मंत्री बना दिया।[1]
याद रहें, ये वहीँ श्री यशवंत निकोसे है जिन्होंने बहुचर्चित "तीसरी आज़ादी" नाम की फिल्म बनायी हैं। इनके इन्हीं कार्यों और समर्पण की वजह से माननीय बहन जी ने श्री यशवंत निकोसे जी को ना सिर्फ उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राज्य मंत्री बनाया बल्कि उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक पद पर भी नियुक्त किया। बहन जी मिशन के लिए योगदान देने वाले किसी भी शख्स को नहीं भूलती हैं, उचित अवसर आने पर ना सिर्फ उन्हें जान सेवा का उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती हैं बल्कि उनका पूरा मान-सम्मान भी करती हैं।
सबक -
बहुजन आन्दोलन के शत्रु और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचे कहते हैं कि बहन जी मिशन के लोगों को पहचानती नहीं हैं, मिशन के लोगों को पार्टी से बाहर कर दिया हैं, बहन जी मिशन से भटक चुकी हैं। ऐसे में नागपुर महाराष्ट्र के रहने वाले मिशन से कभी जुड़े रहे श्री यशवंत निकोसे को बहन जी उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक राजयमंत्री, उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् का चेयरमैन और भारतेन्दु नाट्य अकादमी का निदेशक बनाया जाना बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के मुँह पर जोरदार तमचा हैं।
स्पष्ट हैं कि बसपा एक मिशन हैं। बहन जी इस मिशन को बखूबी आगे बढ़ा रहीं हैं। अपनी आर्थिक मुक्ति चाहने वाले बहुजन समाज में जन्मे बहुजन समाज के दलालों और ब्राह्मणवादी दलों व संगठनों के चमचों के अपने स्वार्थ के चलते बसपा और बहन जो को बदनाम कर रहे हैं, बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन को तोड़ने की कोशिस कर रहे हैं। ऐसे में, नवयुवकों के सामने श्री यशवंत निकोसे का उदाहरण उचित मार्गदर्शन करता हैं कि बहन जी किसी को और कुछ भी नहीं भूलती हैं। मिशन के लोगों को बहन जी ने हमेशा सम्मान किया। उनकों वाज़िब पद आदि से नवाज़ा हैं।
फिलहाल ये बात जरूर सच हैं कि जो भी लोग बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा से हटकर अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए आन्दोलन का सौदा कर रहें हैं, उनकों बिना समय गवाये बहन जी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखती हैं क्योकि आन्दोलन स्वार्थी लोगों से नहीं बल्कि अनुशासित, निष्ठावान और समाज व आन्दोलन के प्रति समर्पित लोगों से ही चलता हैं।
अपील - कृपया इस देश का बहुजन समाज मान्यवर काशीराम के साथ छल करने वाले कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य तमाम संगठनों व लोगों से सावधान रहें। क्योकि ये सभी संगठन बहुजन आन्दोलन से बहुजनों को तोड़ने का कार्य कर रहे हैं। बहुजन समाज को गुमराह कर बहुजन समाज की एक मात्र राष्ट्रिय पार्टी बसपा को कमजोर कर कांग्रेस और भाजपा को मजबूत करने के लिए ही इनकों फण्ड मिलता हैं। बुद्ध-फुले-रैदास-कबीर-बाबा साहेब-मान्यवर काशीराम साहेब, बामसेफ की तश्वीरों के इस्तेमाल और बहन जी एवं बसपा के प्रति बहुजन समाज को गुमराह करके ही इनकी जीविका चलती हैं, इसलिए ही इनकों ब्राह्मणी संगठनों एवं दलों से फण्ड मिलता हैं। इसलिए कांग्रेस-बीजेपी-आरएसएस फण्डित रजिस्टर्ड बामसेफ और ऐसे अन्य सभी संगठनों बहुजन समाज को सर्तक रहने की जरूरत हैं। आज की मौजूदा हालत व बसपा व बहन जी के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के संदर्भ में बाबा साहेब की ये बात पूर्णतया प्रासांगिक हैं कि "आंदोलन की मजबूती के लिए सभी कार्यकर्ताओं को अपने वरिष्ठों के आदेशों को बिना शिकायत स्वीकारने होंगे।[2]"
रजनीकान्त  इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच (इतिहास), इग्नू-नई दिल्ली


[1] (ये पूरा वाकया मार्च ०७, २०२० की शाम ५:४० बजे श्री यशवन्त उदय निकोसे से नागपुर में मुलाकात के दौरान हुई बातचीत पर आधारित हैं)
[2] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-434

Thursday 28 May 2020

ब्राह्मणवाद के दुष्चक्र में बौद्ध धम्म

भारत के बुद्धिज़्म में प्रचलित अचार-विचार कितने प्रासंगिक हैं, सीलोन में बुद्धिज़्म मूलरूप में हैं अथवा उसमे में बौद्ध पंडों द्वारा बदलाव किया गया हैं। इसके बारे में बाबा साहेब पड़ताल की राय रखते हैं ताकि धम्म को इसके मूल स्वरुप में जाना जा सके।
25 मई 1950 से "सीलोन बुद्धिस्ट" कांग्रेस द्वारा सीलोन की पुरानी राजधानी काण्डी में "विश्व बुद्ध परिषद" का आयोजन किया गया था। 26 मई 1950 के दिन बाबा साहब को बोलने का मौका मिला। तब बाबा साहब ने वहां उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए बाबा साहेब ने कहा कि -
"मैं चाहता हूं कि भारत में बौद्ध धम्म के केवल ब्राह्योपचार का ही अनुसरण किया जाता है या फिर सही बुद्ध धम्म का अनुसरण किया जाता है, इस बारे में भारतीय जाने बहुत धर्म जागृत है अथवा केवल परंपरागत है, यही मैं देखना चाहता हूं।"
ये सत्य हैं कि समय के साथ-साथ ब्राह्मणीकरण के चलते बुद्धिज़्म में ना सिर्फ ब्राह्मणी कर्मकांडों का प्रवेश हो चुका हैं बल्कि बुद्धिज़्म में भी एक पुरोहित वर्ग का जन्म हो चुका हैं। ये वर्ग दो-चार किताबों का संदर्भ देकर लोगों को कर्मकाण्डों में उलझाने का कार्य कर रहा हैं। ये और बात हैं कि इनके स्रोत अक्सर मूलस्रोत से होने के बजाय द्वितीय स्रोत (Secondary Source) होती हैं।
इनके मुताबिक ब्राह्मणी दिवाली के दिन दीपदान उत्सव मानना चाहिए। "ॐ मणि पद्मे हुं" का जाप करना चाहिए।  "ॐ" और स्वास्तिक सब बुद्धिज़्म के अंग हैं, आदि। इनके ऐसे तर्कों को सुनकर प्रतिक्रियावादी बुद्धिष्ट खुश हो जाते हैं। इनके ऐसे बातों से हिन्दुओं का वो फिरका भी सहज महसूस करने लगता हैं, जिसकों कृष्ण-साईं और बुद्ध दोनों की स्वार्थसिद्धि के अनुसार जरूरत होती हैं। नतीजा, बुद्धिज़्म का ब्राह्मणी संस्कृति से घालमेल। मतलब कि बुद्धिज़्म में कर्मकाण्डों व अंधविश्वासों का प्रवेश। अंततः बुद्धिज़्म में हानि।
हालाँकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता हैं कि बुद्धिज़्म की संस्कृति बहुत समृद्धि रहीं हैं। आज भारतियों के ब्राह्मणीकरण के बाद धम्म के बहुत सारी रीति-रिवाज आदि बहुत सारे प्रतीक ब्राह्मणी संस्कृति के द्योतक बन गए हैं। ऐसे में भारत में यदि बुद्धिज़्म को पुनः स्थापित करना हैं तो लोगों में भ्रांतियाँ फ़ैलाने के बजाय ब्राह्मणी प्रतीकों व ब्राह्मणी चेंटिंग की पद्धति से अलग आम जनमानस के समझ में आने वाली भाषा में बुद्धिज़्म के मूल सिद्धातों को लोगों तक पहुँचाने की जरूरत हैं।
जहाँ तक हम समझ पाए हैं बुद्धिज़्म आज जनमानस के जीवन को सरल, सुगम, सुखद और समृद्ध बनाने वाली जीवन-शैली हैं। लेकिन दुखद हैं कि बौद्ध धम्म के पंडों ने अपनी विशिष्टता को कायम बनाये रखने के लिए धम्म को जटिल बना दिया हैं। क्योंकि ये स्थापित सत्य हैं कि जब आप किसी सिद्धांत/पद्धति/पंथ/धर्म आदि को जटिल कर देते हैं तो वो आम जनमानस से दूर हो जाती हैं। लोगों के लिए उसको समझना कठिन हो जाता हैं। ऐसे में उन पण्डों का व्यापार और उनकी सामाजिक विशिष्टता व महत्व बढ़ जाता हैं। इसके पश्चात् ये पंडा वर्ग अपने व्यापार व सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए उस सिद्धांत/पद्धति/पंथ/धर्म को कठिन से कठिन बनाये रखने के लिए नित नये कर्मकाण्डों को जन्म देता रहता हैं। शब्दों के मायाजाल में लोगों को उलझाने के लिए नई-नई व्यख्या करता हैं। अपने आपको जस्टिफाई करने के लिए नई-नई किताबे लिखता हैं। क्योंकि लिखित की प्रामणिकता अधिक होती हैं। यहीं ब्राह्मणों ने किया जिसके परिणाम स्वरुप ब्राह्मणवाद स्थापित हो सका। आज यहीं कार्य बुद्धिज़्म के पंडे भी कर रहे हैं। इन्होने अपने निजी स्वार्थ व मंशा की पूर्ती के लिए धम्म को हानि पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। इनकी सफलता की वजह हैं समरसतावादी लोग। ये समतावादी (यथास्थितिवादी) लोग समता (परिवर्तनवादी) के लिए खतरा हैं। समरसतावादियों ने पहले बुद्धिज़्म को निगल लिया हैं और अब बाबा साहेब को निगलने के लिए कार्यरत हैं। 
बुद्धिज़्म के मानने वालों को ये सोचने की जरूरत हैं कि आज बुद्धिज़्म में जितना कर्मकाण्ड (ढोंग-पाखण्ड) प्रवेश कर चुका हैं क्या वाकई उसको बुद्ध ने बनाया था? क्या बुद्ध के पास इतना वक्त रहा कि वे नित नए नियम बनाये। यदि धम्म को कानून की किताबों में ही बांधना था तो बुद्ध ने कुरान, बाइबिल, गीता आदि की तरह कोई एक पवित्र ग्रन्थ क्यों नहीं सृजित करवाया? हमारा स्पष्ट मानना हैं कि बुद्ध ने कुछ मूल सिंद्धांत जैसे कि त्रिशरण, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग बताया होगा। इसको समझने के लिए अलग-अलग उदहारण दिए होगें। समयानुसार कुछ अनुशासन बताये होगें। लेकिन बुद्ध ने कर्मकाण्डों को कभी बल नहीं दिया होगा। ऐसे में हमारा स्पष्ट मत हैं कि जितने भी कर्मकाण्ड बुद्धिज़्म में व्याप्त हो गए हैं ये सब बुद्धिज़्म में पैदा हुए पण्डों की वजह से हैं।
समरसतावादी पंडों से पूछने पर वे कहते हैं कि बाबा साहेब ने खुद कहा हैं कि "मैं आप लोगों को एक कठिन धम्म दे रहा हूँ"। ये समरसतावादी पंडे जिस तरह से बाबा साहेब का नाम उछाल कर खुद को जस्टिफाई कर रहें हैं उससे स्पष्ट हैं की बाबा साहेब ने ऐसा कुछ नहीं कहा होगा। और यदि कहा भी होगा तो उस संदर्भ में बिलकुल नहीं कहा होगा जिस संदर्भ में ये पंडे कह रहें हैं। 
बौद्ध धम्म में पैदा हुए इन पंडों से यदि आप ज्यादा सवाल जबाब करेगें तो ये आप को दोषी करार कर देगें क्योकि आपने उनकी और उनके जैसों की लिखी किताबों नहीं पढ़ा हैं। आप फेसबुक पर उनसे ज्यादा सवाल करते हैं, इसलिए वे आपको फेसबुकिया विद्वान कहते हैं। वे आपके सवाल और आपकी असहमति पसंद नहीं करते हैं। वे चाहते हैं कि आप उनकी व उनके जैसों की किताबें पढ़िए। क्योकि यदि आपने उनकी व उन जैसों को चार-छह किताबें पढ़ ली तो आप सवाल ही नहीं करेगें। आप उनके जैसे ही बन जायेगें। यहीं वे चाहते हैं। नतीजा - धम्म में पंडों की सत्ता और धम्म के मूल तत्वों की हानि। फिलहाल भारत में धम्म के डूबने और १९५६ के बाद वांछित प्रसार ना होने की एक मुख्य वजह ये समरसतावादी बौद्ध पंडे हैं। 
फिलहाल बाबा साहेब का नाम लेकर बौद्ध धम्म में पैदा हुए समरसतावादी बौद्ध पंडों द्वारा धम्म को जो कठिन बताया जा रहा हैं, इसमें समरसतावादी पंडों ने यहाँ पर "कठिन" की परिभाषा क्या हैं, ये स्पष्ट नहीं किया। क्या बाबा साहेब देश की अशिक्षित जनता को कठिनता में झोंककर धम्म का प्रसार कर सकते थे? बिलकुल नहीं। इस लिए बौद्ध धम्म कठिन नहीं हो सकता हैं। यदि कठिन होता तो दुनिया में फ़ैल ही नहीं सकता था।
हमारा विचार हैं कि धम्म सरल, सुगम सुखद व समृद्ध बनाने वाली जीवन शैली थी। इसलिए धम्म ने दुनिया के कोने-कोने में अपने आपको स्थापित कर लिया। दूसरी बात ये भी हैं कि यदि बाबा साहेब ने धम्म कोकठिन कहा भी होगा तो उसका मतलब भारत के लोगों के संदर्भ में और ब्राह्मणी व्यस्था के संदर्भ में रहा होगा। क्योकि ब्राह्मणी धर्म का पालन करना सबसे आसान हैं।
आप किसी की भी पूजा कर लीजिये। आप ईश्वर को मानिये या नकार दीजिये। आपने कोई हिन्दू ग्रन्थ पढ़ा हो या न पढ़ा हो। कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। स्पष्ट हैं कि ब्राह्मणी धम्म एक अनुशासनहीन धर्म हैं, जिसका पालन करना बहुत आसान हैं। और आज के समय में भारतीय लोग इस अनुशासनहीन ब्राह्मणी धर्म के आदी हो चुके हैं। ऐसे में अनुशासनहीन को किसी सरलतम अनुशासन में रखना भी बहुत कठिन कार्य है। इस संदर्भ में बाबा साहेब ने बुद्धिज़्म को कठिन बताया होगा, ये संभव हैं। लेकिन जिस तरह से बाबा साहेब का नाम लेकर बौद्ध पंडों ने लोगों को गुमराह करने का कार्य किया हैं वो ना सिर्फ निंदनीय हैं बल्कि बुद्धिज़्म को शर्मसार करने वाला भी हैं।
ऐसे में स्पष्ट हैं कि बुद्धिज़्म को ब्राह्मणी ब्राह्मणों से तो बचाया जा सकता हैं लेकिन बुद्धिज़्म में पैदा हो चुके ब्राह्मणों से बुद्धिज़्म को बचाना कठिन हैं।
फिलहाल भारत में बुद्ध धम्म के मूल स्वरुप में आये बदलाव और कर्मकाण्डों व रीति-रिवाजों की पड़ताल के संदर्भ में 26 मई 1950 के दिन "सीलोन बुद्धिस्ट कांग्रेस" द्वारा सीलोन की पुरानी राजधानी काण्डी में "विश्व बुद्ध परिषद" में बाबा साहेब कहते हैं कि -
"बौद्ध धम्म के आचार (पद्धति) और उपचार (विचार) भारत में देखने को नहीं मिलते हैं। उन्हें देखने के मौका लाभ उठायें। साथ यह भी देखें कि बौद्ध धम्म के मूल सिद्धांतो से मेल ना खाने वाली श्रद्धाओं से बौद्ध धर्म कितनी ग्रस्त है? और, मूल विशुद्ध स्वरुप धम्म कितना बचा है? और दुनिया सीलोन को बौद्धधर्मी कहती है। इसलिए सीलोन बौद्ध धम्म अनुयायी हैं। या कि वह धम्म आज भी वहां जीवित स्वरूप में प्रचलित है। इस बारे में सोच करें।"
इससे साफ जाहिर हैं कि बाबा साहेब बौद्ध धम्म के पंडों द्वारा बुद्धिज़्म की मूल भावना को किनारे कर धम्म को ब्राह्मणवादी रोजगार बना दिया गया था। इसलिए बाबा साहेब इसमें कुछ नए नियम व अनुशासन जोड़ना चाहते थे। जिससे कि बौद्ध पंडों की दुकान बंद हो सके और बुद्धिज़्म अपने मूल स्वरुप में मूल तत्वों के साथ सुगमता पूर्वक आम जान तक पहुंचकर उनके लिए कल्याणकारी साबित हो सके।
रजनीकान्त इन्द्रा
एमएएच इग्नू-नई दिल्ली

Monday 4 May 2020

मान्यवर कांशीराम साहब यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी बांदा उत्तर प्रदेश

पिछड़े वर्ग की एक मात्र राष्ट्रिय नेता बहन जी के नेतृत्व में पिछड़े वर्ग की बसपा सरकार ने भारत में लोकतंत्र के महानायक मान्यवर कांशीराम साहब के सम्मान में मान्यवर कांशीराम साहब यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी बांदा उत्तर प्रदेश (Manyawar Kashiram Saheb University of Agriculture and Technology Banda Uttar Pradesh) बनवाया है।
बसपा शासन काल (2007-2012) में आयरन लेडी बहन जी द्वारा बनाया गया लगभग 600 एकड़ मे फैला यह मान्यवर कांशीराम साहब कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय 6 अलग-अलग स्कूलों में विभाजित -
1. College of Agriculture
2. College of Horticulture
3. College of Forestry
4. College of Home Science
5. College of Agricultural Engineering & Technology
6. College of Veterinary Science & Animal Husbandry
बहुजन समाज के लोगों,
ये सोचने का विषय हैं कि भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन जी ने भारत निर्माण के लिए इतने महत्वपूर्ण कार्य किये हैं, फिर भी देश का बहुजन समाज बहन जी के भारत निर्माण कार्यों से अन्जान अपने शोषकों से अपने हित की आस लगाए बैठा हैं। पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े मसीहा, मण्डल मसीहा मान्यवर कांशीराम साहब के सम्मान में बहन जी ने मान्यवर कांशीराम साहब के नाम पर मान्यवर कांशीराम साहब यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी बांदा उत्तर प्रदेश (Manyawar Kashiram Saheb University of Agriculture and Technology Banda Uttar Pradesh) बनवाया।
लेकिन दुखद है कि अखिलेश यादव जी ने 'पिछड़े वर्ग के महान नेता''मण्डल मसीहा मान्यवर कांशीराम साहब’बहन जी के प्रति अपनी नफ़रत को अमलीजामा पहनाने के लिए अखिलेश यादव जी ने इस कृषि विश्वविद्यालय के नाम से "मान्यवर कांशीराम साहब" का नाम हटा दिया है। अखिलेश यादव की इस नफ़रत के परिणामस्वरूप वर्तमान में इस कृषि विश्वविद्यालय का वर्तमान नाम "बांदा यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी" (Banda University of Agriculture and Technology Banda Uttar Pradesh) है।
फिलहाल, "मण्डल मसीहा मान्यवर कांशीराम साहब" और "पिछड़े वर्ग की एक मात्र राष्ट्रीय नेता बहन जी" के प्रति अखिलेश यादव जी व सपा की नफ़रत के बावजूद इस विश्वविद्यालय की हर ईट पर मान्यवर साहब और बहन जी के संघर्षों की छाप मौजूद हैं जो कि भारत निर्माण में मान्यवर कांशीराम साहब व बहन जी के योगदान को बुलांदगी के साथ बयां कर रहा है।
(NOTE - समस्त पिछड़े वर्ग के लोगों को उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जो समाजवादी पार्टी में शामिल हो कर बाबा साहेब व कांशीराम साहब का मिशन चलाने गये है।)
देश में शिक्षा और तकनीकी का ऐसा विशाल विश्वविद्यालय स्थापित कर भारत निर्माण के लिए कार्य करने वाली "पिछड़े वर्ग की एक मात्र राष्ट्रीय नेता" तथा "भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका" बहन कुमारी मायावती जी को बहुत बहुत साधुवाद और जय भीम, नमो बुद्धाय।
शुक्रिया बहन जी